अगर आपको लगता है कि एसी ट्रेन 20 या 25 साल पहले ही आई है, तो हम आपको बता दें कि यह गलत है। जी हां, भारत में एसी ट्रेन की शुरुआत अंग्रेजी शासन के समय ही हो गई थी। पहली एसी ट्रेन साल 1934 में चली थी। आइए, यहां जानते हैं कि इंडियन रेलवे की पहली एसी ट्रेन कौन-सी थी और जब एसी नहीं थे तो उस समय ट्रेन के कोच को ठंडा रखने के लिए किस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था।
90 साल पहले ट्रेन में लगाया गया था AC कोच!
Name of first ac train
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पब्लिक डोमेन में मौजूद जानकारी के मुताबिक, साल 1934 में पहली बार ट्रेन में एसी कोच जोड़ा गया था। एसी कोच जोड़ने से पहले ट्रेन का नाम पंजाब मेल था लेकिन, 1934 में इसका नाम बदलकर द फ्रंटियर मेल कर दिया गया था। कमाल की बात यह है कि आज भी यह ट्रेन सर्विस में है और इसका नाम अब गोल्डन टेंपल मेल कर दिया गया है।
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पहली एसी ट्रेन कब चली थी और इसका नाम क्या था, इसका जवाब तो आप जान ही चुके हैं। लेकिन, यहां आपके मन में एक सवाल आ सकता है कि उस जमाने में तो एसी का आविष्कार हुआ ही नहीं था, तो इंडियन रेलवे किस तरह से ट्रेन के कोच ठंडे रखता था? तो इसका जवाब है कि ट्रेन के एसी कोच को ठंडा रखने के लिए इंडियन रेलवे एक खास तकनीक का इस्तेमाल करता था जिसकी मदद से यात्रियों को ठंडक महसूस होती थी।
किस तकनीक का इस्तेमाल करके एसी कोच रखे जाते थे ठंडे?
which technique used for cooling train coaches without ac
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जब एसी नहीं था, तब ट्रेन के कोच को ठंडा रखने के लिए बोगियों के नीचे बर्फ की सिल्लियां लगाई जाती थीं। जी हां, यह हैरान होने वाली बात नहीं है कोच के नीचे बॉक्स में बर्फ की सिल्लियों को रखा जाता था और ऊपर से पंखा चला दिया जाता था। पंखे और बर्फ की वजह से यात्रियों को ठंडक का अहसास होता था। जब यह बर्फ की सिल्लियां पिघल जाती थीं, तो उन्हें रास्ते में किसी स्टेशन पर दोबारा लगा दिया जाता था। बता दें, उस समय इंडियन रेलवे की फ्रंटियर मेल लाहौर से मुंबई सेंट्रल के बीच चलती थी और इससे ज्यादातर ब्रिटिश अधिकारी सफर करते थे।
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उस समय फ्रंटियर मेल को सबसे तेज चलने वाली ट्रेन माना जाता था। ऐसा कहा जाता था कि रोलेक्स की घड़ी धोखा दे सकती है, लेकिन फ्रंटियर मेल नहीं। अगर यह ट्रेन 15 मिनट भी लेट हो जाती थी, तो जांच के आदेश मिल जाते थे। भारत पाकिस्तान के विभाजन से पहले यह ट्रेन लाहौर और मुंबई के बीच चलती थी। वहीं, अब यह मुंबई और अमृतसर के बीच चलाई जाती है। इसी वजह से इसका नाम भी गोल्डन टेंपल मेल कर दिया गया है।
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Image Credit: Freepik and Jagran.Com