सूत्रों के मुताबिक, 70 हजार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट 17 बी के तहत 7 अगली पीढ़ी के फ्रिगेट और दो मल्टी पर्पज पोत बनाने का प्रस्ताव जल्द ही आएगा. वहीं, प्रोजेक्ट 75 इंडिया (I) के तहत 70 हजार करोड़ रुपए की लागत से 6 अत्याधुनिक पनडुब्बियां और प्रोजेक्ट 75 (एड-ऑन) के तहत करीब 36 हजार करोड़ रुपए में 3 स्कॉर्पीन क्लास की पनडुब्बियां भी बनाई जाएंगी.
इसके अलावा 8 नेक्स्ट जेनरेशन कार्वेट्स बनाने की योजना भी है, जिस पर करीब 36 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे. सभी प्रोजेक्ट मिलाकर लागत 2.40 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा बैठेगी. सूत्रों के मुताबिक, नए युद्धपोत और पनडुब्बियां पुराने प्लेटफॉर्म्स की जगह लेंगे. इनसे तकनीकी क्षमता और ताकत बढ़ेगी. यह सिर्फ खतरे के आकलन पर नहीं, बल्कि क्षमता बढ़ाने पर आधारित योजना है.
चीन की चुनौतीयों को जवाब देने की तैयारी
चीन की पीएलए नेवी के पास इस वक्त दुनिया की सबसे बड़ी नेवी है, जिसके पास 355 युद्धपोत और पनडुब्बियां हैं. वहीं भारतीय नौसेना के पास 130 से ज्यादा जहाज और पनडुब्बियां हैं. पुराने प्लेटफॉर्म्स के तेजी से पुराने पड़ने के चलते नए पोत जरूरी हैं ताकि कुल ताकत भी बढ़ाई जा सके.
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हालांकि भारतीय नौसेना के पास अब भी कई पुरानी पनडुब्बियां हैं. 6 स्वदेशी स्कॉर्पीन क्लास पनडुब्बियों के शामिल होने के बावजूद नौसेना की पनडुब्बी शाखा में 12 पुरानी पनडुब्बियां चालू हैं. ऐसे नौसेना को और भी दमदार विध्वंसक और पनडुब्बियों की जरूरत है.
सबसे बड़ी कमी विध्वंसक जहाजों (डेस्ट्रॉयर्स) की है. दिल्ली क्लास डेस्ट्रॉयर्स 1997 में शामिल हुए थे, और 25 साल से ज्यादा पुराने हो चुके हैं. बड़ी मरम्मत से इन्हें 10-15 साल और चलाया जा सकता है, लेकिन अगर अभी से इनके नए प्रोजेक्ट पर काम नहीं हुआ तो भविष्य में इनकी संख्या घट सकती है. इसी को देखते हुए भारत अपनी तैयारी को तेज कर रहा है.
आपको बता दे, डेस्ट्रॉयर्स मल्टीरोल जहाज होते हैं जो समुद्र, पानी के नीचे और हवा में एक साथ ऑपरेशन कर सकते हैं. भारतीय नौसेना ने 2035 तक नए 175 जहाजों का बेड़ा तैयार करने का लक्ष्य रखा है.