आगामी विधानसभा चुनाव में यह पार्टी के लिए नया अवसर जैसा है। बिहार में 1990 के बाद सत्ता से दूर होते ही कांग्रेस चर्चा ही नहीं गतिविधियों में भी सिमट गई थी। बड़े-बड़े मुद्दों पर कांग्रेसी बयानों तक सिमट गए थे। इस बार यात्रा के दौरान कांग्रेसी जिधर से गुजरे वोट चोरी के साथ अपराध, बेरोजगारी, पलायन जैसे मुद्दों पर कड़ा प्रहार करते दिखे। उनके समर्थकों में जोश है, जज्बा है। संगठित प्रयास है। हालांकि यह बदलाव प्रदेश संगठन में परिवर्तन के बाद से ही दिखने लगा था। यात्रा ने संगठन की मजबूती और नई पीढ़ी के उभार पर एक तरह से मुहर लगा दी है। पार्टी में नई पीढ़ी का उभार दिखने भी लगा है। कांग्रेस इसके जरिए निचले स्तर पर गुप्त फीडबैक लेकर भविष्य का नेतृत्व गढ़ने का प्रयास भी कर रही है।
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पिछलग्गू की छवि तोड़ी
मतदाता अधिकार यात्रा अपने अंतिम पड़ाव पर है। एक सितंबर को पटना के गांधी मैदान स्थित गांधी मूर्ति से हाईकोर्ट अंबेडकर पार्क तक समापन मार्च होगा। अब तक चौदह दिनों की 1300 किमी लंबी यात्रा मगध, अंग, सीमांचल, कोसी, मिथिला, तिरहुत, चंपारण, सारण और शाहाबाद के 25 जिले और 110 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों से गुजर चुकी है। सभी क्षेत्रों में यात्रा के रास्ते में भीड़ राहुल-तेजस्वी का स्वागत करती रही। कई इलाकों में भीड़ के हाथों में कांग्रेस के झंडे राजद की तुलना में ज्यादा दिखे। यह कांग्रेस के आने वाले दिनों के लिए सुखद संकेत है। इस तरह यात्रा ने निचले स्तर तक के कार्यकर्ताओं में पार्टी को राजद के पिछलग्गू की छवि से बाहर निकाला है।
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मुद्दों को घर-घर तक पहुंचाने में कामयाबी मिली
यात्रा के जरिए राहुल-तेजस्वी ने इंडिया गठबंधन के चुनावी मुद्दे को घर-घर तक पहुंचाने में भी कामयाबी हासिल की। एसआईआर के जरिए मताधिकार छीने जाने का डर दिखाया। वहीं, बेरोजगारी, पलायन, अपराध पर भी प्रहार किया। इससे बुजुर्गों की पार्टी बन चुकी कांग्रेस ने युवाओं को आकर्षित किया। वहीं, माई बहिन मान योजना के जरिए महिलाओं को भी लुभाया।
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एकजुट दिखा गठबंधन
पूरी यात्रा के दौरान इंडिया गठबंधन ने एकजुटता का प्रदर्शन किया। जिस तरह भाजपा के नेतृत्व में एनडीए के दल एकजुट दिखते हैं, उसी तरह कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन के दलों में समन्वय दिखा। सासाराम, औरंगाबाद से लेकर आरा तक राहुल के साथ तेजस्वी, दीपंकर, मुकेश सहनी के अलावा भाकपा-माकपा के नेता हर समय साये की तरह रहे। मंच से एक-दूसरे की हौसला आफजाई भी की। इससे महागठबंधन कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ा है। पूरे राज्य में गठबंधन के कार्यकर्ताओं के बीच भी समन्वय दिखा। इसका विधानसभा चुनाव परिणाम पर क्या असर पड़ेगा, यह तो नवंबर में पता चलेगा, लेकिन चुनावी जंग में दो मोर्चे मजबूती से आमने-सामने नजर आएंगे।