राहुल गांधी ने इसके पहले राफेल विमानों की खरीद में घोटाला होने का मुद्दा उठाया और 'चौकीदार चोर है' का नारा दिया। लेकिन जनता ने उनके इस दावे को स्वीकार नहीं किया और मोदी या केंद्र सरकार इस मुद्दे के बाद ज्यादा मजबूत होकर उभरे। उलटे राहुल गांधी को ही इस बयान के लिए माफी मांगनी पड़ी। इसी तरह राहुल ने महात्मा गांधी की हत्या में आरएसएस की भूमिका और वीर सावरकर के मुद्दे पर भी आक्रामक रुख अपनाया, लेकिन अंततः उन्हें इसके लिए भी माफी मांगनी पड़ी। मोदी सरनेम पर विवादित टिप्पणी करके भी वे फंस चुके हैं।
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हालांकि, पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान 'संविधान पर खतरा' होने के उनके मुद्दे ने काफी असर दिखाया और भाजपा मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार अपने दम पर सरकार बनाने से चूक गई। लेकिन इसके बाद भी यह समझना होगा कि राहुल गांधी के नेतृत्व में उनका यह अभियान मोदी को सत्ता में आने से नहीं रोक सका।
यदि सफल रहा राहुल गांधी का मुद्दा
यदि राहुल गांधी मतदाता सूची पर पैदा हुए विवाद के सहारे कांग्रेस-राजद को बिहार में जीत दिलाने में सफल रहते हैं तो इससे उनकी स्वीकार्यता तेजी से बढ़ेगी। यह पूरे देश में उनकी संघर्ष करने वाले नेता के रूप में छवि को स्थापित करेगा। इसका असर केवल बिहार तक सीमित नहीं रहेगा। यदि वे अपने गठबंधन को जीत दिलाने में सफल रहते हैं तो इससे कांग्रेस पूरे देश में मजबूत हो जाएगी। यूपी में समाजवादी पार्टी से वह बेहतर मोलभाव कर सकेगी और उसे यूपी में ज्यादा सफलता हासिल हो सकती है। यूपी के बाद इसका असर पश्चिम बंगाल और 2029 के लोकसभा चुनावों तक भी हो सकता है।