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फंस गया पाकिस्तान, टूटेगी आतंकवाद की जुगलबंदी! कनाडा में जी7 से पीएम मोदी कर सकते हैं आखिरी चोट

फंस गया पाकिस्तान, टूटेगी आतंकवाद की जुगलबंदी! कनाडा में जी7 से पीएम मोदी कर सकते हैं आखिरी चोट

नई दिल्ली: पहलगाम आतंकवादी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद वैश्विक स्तर पर भारत आज एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। यह कूटनीति, राष्ट्रीय सुरक्षा और वैश्विक गठबंधन को लेकर एक साथ आगे बढ़ रहा है। कनाडा में होने वाले जी7 (G7) शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास एक सुनहरा मौका है। मौजूदा हालातों में यहां वे भारत की वैश्विक स्थिति को और मजबूत कर सकते हैं।

कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने प्रधानमंत्री मोदी को जी7 में आमंत्रित किया है। यह भारत के लिए एक मंच हो सकता है। यहां से यह संदेश दिया जा सकता है कि भारत विरोधी ताकतों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, चाहे वह कहीं पर फल-फूल रहे हों। कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में भारत से उसके रिश्ते खराब हो गए थे। अब कार्नी के आने से उम्मीद की किरण जगी है। भारत के लिए यह शिखर सम्मेलन मात्र आर्थिक साझेदारी और जलवायु परिवर्तन पर बात करने से बढ़कर है। यह उन ताकतों को हराने का मौका है, जो लंबे समय से भारत को अस्थिर करने की साजिशें कर रही हैं।

g7 summit 2025 og.
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कनाडा समझ गया है भारत की वैश्विक अहमियत
जस्टिन ट्रूडो के समय में कनाडा में खालिस्तानी चरमपंथियों को बढ़ावा मिला। इसकी वजह थी, वहां के खालिस्तान नेता जगमीत सिंह पर उनकी सियासी निर्भरता। अब कनाडा को समझ आ रहा है कि भारत को नाराज करने का नुकसान क्या है। ट्रूडो ने बिना किसी सबूत के आरोप लगाया था कि भारतीय एजेंटों ने खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या करवाई है। यह भारत और कनाडा के संबंधों का सबसे बुरा दौर था। अब कार्नी के आने से एक नई उम्मीद जगी है। उन्होंने पीएम मोदी को जी7 के लिए आमंत्रित किया है। इससे पता चलता है कि कनाडा समझ रहा है कि भारत कितना महत्वपूर्ण है। आज भारत भू-राजनीतिक रूप से ही नहीं, आर्थिक रूप से भी विश्व के लिए जरूरी है।

पाकिस्तानी आतंकियों-खालिस्तानियों की जुगलबंदी टूटेगी!
पीओ मोदी के कनाडा यात्रा में भारत के साथ संबंधों को राजनयिक स्तर पर फिर से पुख्ता करने के लिए सिर्फ उसके अच्छे इरादे काफी नहीं होंगे। कनाडा को खालिस्तानी कट्टरपंथियों के सुरक्षित ठिकानों को खत्म करने का ठोस भरोसा भी देना होगा। क्योंकि, ये समूह सिर्फ विचारधारा तक सीमित नहीं हैं। वे एक गंभीर खतरा बन चुके हैं। 2021 की हडसन इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार खालिस्तानी नेटवर्क पाकिस्तान के आतंकी संगठनों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। वे संसाधन, रणनीति और प्रशिक्षण में भी साझीदार हैं। भारत की सुरक्षा एजेंसियों को लंबे समय से शक है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) इस गठबंधन को फंडिंग और मार्गदर्शन दे रहा है। इन परिस्थितियों में जी7 शिखर सम्मेलन में शामिल होने वाले दुनिया भर के ताकतवर देशों के नेताओं की मौजूदगी में कनाडा को अपनी जमीन विदेश प्रॉक्सी वार का अड्डा होने से इनकार करना आसान नहीं होगा और भारत के पास उसकी इसी कमजोर कड़ी को टाइट करने का मौका है।

आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति को मिलेगी नई धार
पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने साफ कर दिया है कि वह अपनी आंतरिक सुरक्षा को हर हालत में प्राथमिकता देगा और आतंकवाद के खिलाफ उसक जीरो टॉलरेंस की नीति अब बहुत आक्रामक बनी रहेगी। वैसे भी आतंकवाद के खिलाफ पीएम मोदी के सख्त रुख से दुनिया परिचित है और सबको पता है कि इस पर उनके रहते कोई समझौता नहीं होगा। लिहाजा जी7 के मंच का इस्तेमाल करके प्रधानमंत्री निश्चित तौर पर दुनिया के नेताओं को भी आगाह करेंगे कि आतंकवाद किस कदर मानवता का दुश्मन बन चुका है। आज भारत इससे पीड़ित है तो कल दुनिया का कोई भी मुल्क हो सकता है और यह हो भी रहा है। वहीं कनाडा के लिए तो संदेश बिल्कुल साफ होगा कि भारत की चिंताओं का सम्मान करे, नहीं तो राजनयिक संबंध खराब हो सकते हैं।

कनाडा के लिए आर्थिक रूप से भी है भारत की जरूरत
कनाड की ओर से भी मौजूदा परिस्थितियों में बदलाव की संभावना दिख रही है। क्योंकि, अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के कारण कनाडा को भी व्यापार में दिक्कतें हो रही हैं। उसे नए व्यापारिक सहयोगियों की जरूरत है। भारत की अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से बढ़ रही है और उसे प्राकृतिक संसाधनों की जरूरत है। इसलिए उसके लिए भारत एक अच्छा विकल्प है। आर्कटिक भी एक रणनीतिक क्षेत्र है। यहां भारत और कनाडा मिलकर चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं को संतुलित कर सकते हैं। दोनों देशों के लोगों के बीच वैसे भी अच्छे संबंध हैं। कनाडा में बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं। उसे भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश का सहयोग लेने के लिए सिर्फ खालिस्तानियों पर कंट्रोल करने की राजनीतिक साहस दिखाने की जरूरत है।

अगर भारत के नजरिए से देखें तो कार्नी का निमंत्रण देर से आया, लेकिन यह सही समय पर आया है। भारत को आमंत्रित नहीं करने पर यह कहा जा रहा था कि पश्चिम अब भी विकासशील देशों को कम आंकता है। लेकिन, पीएम मोदी के आने से जी7 को यह साबित करने का मौका मिला है कि वह नई भू-राजनीतिक स्थिति को समझता है। दूसरी तरफ भारत के लिए यह इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि पहलगाम हमले की पीड़ा झेलने के बाद खालिस्तानियों और पाकिस्तानी जिहादी संगठनों के खतरनाक गठजोड़ को दुनिया के सामने बेनकाब करने का मौका है। यह ऐसा अवसर है, जिसमें पाकिस्तान को भी अलग-थलग किया जा सकता और कनाडा के खालिस्तानियों की भी लगाम कसी जा सकती है।