ऐतिहासिक कूटनीति की तर्ज पर
असल में पीएम मोदी सरकार इस रणनीति में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की ऐतिहासिक कूटनीति की तर्ज पर आगे बढ़ रही है. 1994 में नरसिम्हा राव ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दे पर भारत का पक्ष रखने के लिए विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल भेजा था. उस समय पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत के खिलाफ प्रस्ताव लाने की कोशिश की थी. लेकिन भारतीय प्रतिनिधिमंडल की मेहनत से वह प्रस्ताव गिर गया.
पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा
इस प्रतिनिधिमंडल के अगुवा अटल बिहारी वाजपेयी थे. उनके साथ जम्मू-कश्मीर के नेता फारूक अब्दुल्ला, तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री सलमान खुर्शीद और संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि हामिद अंसारी भी शामिल थे. सभी ने मिलकर दुनिया को यह समझाया कि कश्मीर भारत का आंतरिक मुद्दा है और पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है.
पाकिस्तान फिर से वैश्विक मंच पर बेनकाब
जब ये प्रतिनिधिमंडल जेनेवा से जीतकर भारत लौटा तो उनका स्वागत किसी विजयी क्रिकेट टीम की तरह हुआ. इस कूटनीतिक कामयाबी के बाद भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर पर अपनी स्थिति मजबूत की और पाकिस्तान को अलग-थलग किया. इसी के तुरंत बाद भारत ने JKLF प्रमुख जावेद मीर को गिरफ्तार कर आतंकवाद पर सीधा वार भी किया. अब मोदी सरकार उसी तरह की बहुदलीय कूटनीति से पाकिस्तान को फिर से वैश्विक मंच पर बेनकाब करने जा रही है.
बता दें कि मोदी सरकार ने यह फैसला लिया है कि भारत के सांसदों का डेलिगेशन विदेशों का दौरा कर पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद की जानकारी देंगे. इस डेलिगेशन में कांग्रेस सांसद शशि थरूर के साथ-साथ और भी कई पार्टियों सांसद विदेशों का दौरा करेंगे.