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Rewa News: इस पेड़ के पत्तों पर भगवान कृष्ण ने खाया था माखन, आज भी हरा भरा है ये बरगद

Rewa News: इस पेड़ के पत्तों पर भगवान कृष्ण ने खाया था माखन, आज भी हरा भरा है ये बरगद

यह एक विलुप्त प्रजाति का पौधा जो बहुत ही कम देखने को मिलता है, विलुप्त प्रजाति का होने के चलते अब इसके पौधे मिल नहीं पाते, जिससे आयुर्वेद के इलाज में इसका उपयोग नहीं हो पा रहा है.

मध्य प्रदेश के रीवा जिले में स्थित उद्यानिकी में कृष्ण बरगद नाम का एक पड़े हैं, जिसे संरक्षित करने का काम वन विभाग की तरफ से किया जा रहा है. यह पेड़ अभी छोटा है. इस पेड़ की खासियत इसकी पत्तियां हैं. इसके बड़े पत्ते कटोरी के जैसे होते हैं और छोटे पत्ते चम्मच की तरह होते हैं. कहा जाता हैं कि भगवान कृष्ण जब पड़ोस के घरों से माखन चुराया करते थे, और मां यशोदा की डांट से बचने के लिए भगवान चुराया हुआ माखन इस पेड़ के पत्तों की कटोरी बनाकर वहीं छिपा देते थे.

‘कान्हा’ ने जिस ‘पेड़’ के पत्तों में रखकर माखन खाया था, उसकी हर डाल पर आज भी ‘कटोरी-चम्मच’ जैसे आकार में पत्ते उगते हैं. दुर्लभ, दिव्य और अलौकिक माना जाने वाला यह कृष्ण बरगद का पेड़ रीवा के वन विभाग के उद्यानिकी में मौजूद है. यह पेड़ अभी छोटा है. इसे संरक्षित करने का काम किया जा रहा है, जिसके बाद इसे दूसरे जगहों पर भी भेजा जाएगा. इस पेड़ का लेकर पहली मान्यता यह है कि मैया यशोदा ने कन्हैया को पहली बार इसी वटवृक्ष के पत्तों में रखकर माखन खिलाया था.
 

जानें क्या हैं पेड़ का मान्यताएं
वहीं, दूसरी मान्यता है कि भगवान कृष्ण पड़ोस के घरों से माखन चुराया करते थे, और मां यशोदा की डांट से बचने के लिए चुराया हुआ माखन इस पेड़ के पत्तों की कटोरी बनाकर छिपा देते थे. ऐसा कहा जाता है कि ईश्वर का सानिध्य और स्पर्श पाकर यह पेड़ अलौकिक और दिव्य बन गया था. मान्यता है कि कन्हैया को मक्खन खिलाने के लिए इसका हर पत्ता कटोरी और चम्मच जैसे आकार में उगने लगा था. आज भी इस कृष्ण बरगद के पत्ते कटोरीनुमा आकार में होते हैं.

इलाज के लिए होता इस्तेमाल
रीवा के सहायक वन संरक्षक सामाजिक वानिकी हृदय लाल सिंह ने बताया कि आयुर्वेद में कृष्ण बरगद का उपयोग कई शारीरिक समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है. जैसे पाचन सुधारना, खून साफ करना, सर्दी-जुकाम से राहत, सूजन कम करना और घावों का इलाज. इसके पत्तों के दूध का उपयोग दर्द निवारक के तौर पर, इसकी छाल और पत्तों का उपयोग जलन और त्वचा रोगों के लिए होता है.

यह एक विलुप्त प्रजाति का पौधा जो बहुत ही कम देखने को मिलता है, विलुप्त प्रजाति का होने के चलते अब इसके पौधे मिल नहीं पाते, जिससे आयुर्वेद के इलाज में इसका उपयोग नहीं हो पा रहा है.