1899 में लंदन की गलियों में पैदा हुए हिचकॉक ने दुनिया को सस्पेंस और थ्रिलर की ए,बी, सी और डी से वाकिफ कराया. दुनिया को नए लैंस से सिनेमा देखना सिखाया. उनका लैंस इंसान के भीतर के डर और कौतूहल को एक साथ कैप्चर करता था. वह हमेशा कहते थे कि पर्दे पर डर को दिखाने के बजाए दर्शकों को महसूस कराना ज्यादा जरूरी होता है.
थ्रिलर फिल्मों के पुरोधा बन गए हिचकॉक हमेशा कहते रहे कि सस्पेंस तभी कारगर साबित होता है, जब दर्शकों को फिल्म के किरदारों से ज्यादा जानकारी मालूम हो. सस्पेंस का मतलब सिर्फ शॉक देना नहीं है बल्कि असली सस्पेंस तब है, जब दर्शक जानते हो कि कुछ गलत होने जा रहा है लेकिन कब होगा, ये किसी को मालूम नहीं.
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत इंजीनियरिंग कंपनी में ड्राइंग डिजाइनर के तौर पर की लेकिन 1920 में किस्मत उन्हें शोबिजनेस में खींच लाई. शुरुआत में उन्होंने टाइटल कार्ड डिजाइनर के तौर पर काम किया लेकिन फिर असिस्टेंट डायरेक्टर का जिम्मा संभालते-संभालते डायरेक्टर की कुर्सी तक पहुंच गए. उनकी पहली फिल्म 1925 की The Pleasure Garden थी. यह साइलेंट फिल्मों का दौर था. लेकिन सिनेमा की उस चुप्पी में भी उन्होंने अपनी विजुअल स्टोरीटेलिंग का लोहा मनवा लिया था.
हिचकॉक को इंसानी मन की गहराइयों में गोते लगाने का जुनून था. वह मानते थे कि सस्पेंस तभी सफल होगा, जब दर्शकों को मालूम हो कि कुछ तो बुरा होने वाला है लेकिन कैसे और कब होगा... इस पर रहस्य बना रहे.
उनकी फिल्में अपराध, मनोविज्ञान, मानवीय संवेदनाओं और नैतिक दुविधाओं के ईर्द-गिर्द बुनी होती थीं. लेकिन Who is Criminal के कॉन्सेप्ट को खारिज कर उन्होंने How to Capture Him/Her पर पूरा जोर दिया. उनका यही एक्सपेरिमेंटल स्टाइल उन्हें आम थ्रिलर फिल्ममेकर्स से अलग बनाता था. वह मानते थे कि दर्शकों को पहले ही खतरे से वाकिफ करा दो ताकि उनका मन डर और उम्मीद के भावों को लिए पैंडूलम की तरह झूलता रहे.
हिचकॉक के फिल्में बनाने से पहले दुनियाभर में जितनी भी सस्पेंस फिल्में बनती थी. वह सब कातिल कौन है तक सीमित रहती थी. लेकिन हिचकॉक ने सस्पेंस को साइंस और साइकोलॉजी से जोड़ा. उन्होंने सस्पेंस को क्या होगा से कैसे महसूस होगा में तब्दील कर दिया था. उन्होंने सस्पेंस को सरप्राइज और हॉरर से बिल्कुल अलग कर दिया.
उनका कहना था कि डर का असली मजा उसके इंतजार में है, ना कि उसके होने में. हिचकॉक की Vertigo, Psycho and Rear Window जैसी फिल्में दिखाती हैं कि कभी-कभी सबसे बड़ा खतरा बाहर नहीं, आपके भीतर होता है. वह कहानी के प्लॉट के ईर्द-गिर्द पूरी फिल्म को नहीं गढ़ते थे बल्कि कैरेक्टर की साइकोलॉजी और उनकी कमियों पर जोर देते थे. कोई आम आदमी असाधारण परिस्थितियों में किस तरह रिएक्ट करेगा, वह उसी से सस्पेंस को बाहर निकालते थे.
हिचकॉक शायद दुनिया के पहले और अब तक के आखिरी ऐसे फिल्मकार हैं, जो अपनी तकरीबन हर फिल्म की शुरुआत में कुछ सेकंड के लिए नजर आते थे. फिल्म शुरू होते ही कभी बस से उतरते, कभी सड़क क्रॉस करते तो कभी फिल्म के नायक के बगल में खड़े होकर अखबार पढ़ते हिचकॉक को दर्शकों की नजरें ढूंढ रही होती थीं.
हालांकि, इसके पीछे की कहानी भी काफी इंटरेस्टिंग है. फिल्म में कैमियो के लिए जिस शख्स को सेट पर आना था. वह किसी कारणवश नहीं आ पाया तो हिचकॉक ने उस तीन सेकंड के रोल को अदा किया. लेकिन वही शॉकिंग एलिमेंट दर्शकों को पसंद आया. इसके बाद हिचकॉक अपनी हर फिल्म की शुरुआत में कुछ सेकंड के लिए पर्दे पर दिखने लगा. यह कॉन्सेप्ट इतना पॉपुलर हुआ कि लोग थिएटर्स में जल्दी पहुंचकर फिल्म में हिचकॉक के कैमियो को ढूंढा करते थे.
हिचकॉक की खास बात ये थी कि वह सस्पेंस को धीरे-धीरे तनाव के साथ बिल्ड-अप करते थे. 1960 की उनकी फिल्म Psycho उस दौर की पहली ऐसी फिल्म थी जिसमें किसी लीड कैरेक्टर का फिल्म के बीच में मर्डर कर दिया गया. ये दर्शकों के लिए एक शॉकिंग एलिमेंट था क्योंकि उसी लीड एक्ट्रेस को देखने के लिए दर्शक बड़ी संख्या में सिनेमा हॉल पहुंचे थे. लेकिन अपने समय की उस मशहूर अदाकारा जैनेट को फिल्म के बीचोबीच मारने का रिस्क हिचकॉक जैसे डायरेक्टर ही ले सकते हैं. ये हिचकॉक के सिनेमा का ही कमाल है कि यह सीन सिनेमाई इतिहास का सबसे चर्चित बाथरूम मर्डर बन गया. लेकिन इस सीन की सबसे खास बात ये थी कि मर्डर के दौरान वायलेंस दिखाया नहीं गया बल्कि महसूस कराया गया. जैनेट के शरीर पर चाकू का एक भी वार कैमरे पर नहीं दिखाया गया. जैनेट की चीखें और लाउड म्यूजिक ने हर एक फ्रेम में तनाव पैदा किया. यह एक ऐसा शावर सीन था, जिसने सस्पेंस और थ्रिलर फिल्मों का चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया.
वहीं, हिचकॉक की Rear Window एक ऐसे फोटोग्राफर की कहानी है, जिसके पैर में प्लास्टर लगा है और वह दिनभर अपनी व्हिलचेयर पर बैठकर दूरबीन से सामने वाली बिल्डिंग के लोगों को ऑब्जर्व करता है. वह धीरे-धीरे ऑब्जर्व करता है कि सामने वाले अपार्टमेंट में रहने वाले शख्स ने अपनी बीवी का कत्ल कर दिया है.
हिचकॉक ने इस पूरी फिल्म में दर्शकों को हीरो के लैंस पर देखने को मजबूर किया है. मतलब दर्शक उतना ही जानते हैं जितना हीरो जानता है. हिचकॉक सीधे कुछ नहीं दिखाते बल्कि वो दर्शकों के दिमाग में डर पैदा कर देते हैं. यही हिचकॉक का मास्टरस्ट्रोक था कि उन्होंने दर्शकों को इस मर्डर का गवाह बना दिया. एक खिड़की से पूरी कहानी कह देना एक बिल्कुल नया एक्सपेरिमेंट था. इसी फिल्म से हिचकॉक ने दुनिया को MacGuffin का कॉन्सेप्ट भी दिया. एक ऐसा कॉन्सेप्ट जो स्टोरी को आगे बढ़ाता है पर फिल्म में उसका असली महत्व कुछ खास नहीं होता. जैसे इस फिल्म में दूरबीन वह एलिमेंट है जबकि Psycho में जैनेट ने जो पैसे चुराए वह MacGuffin इफेक्ट है लेकिन बाद में वह पैसे फिल्म में महत्वहीन हो जाते हैं.
इसी तरह Vertigo को हिचकॉक की सबसे गहरी और साइकोलॉजिकल फिल्म माना जाता है. ये फिल्म सस्पेंस से कहीं ज्यादा जुनून, अपराधबोध और आइडेंटिटी क्राइसिस के पहलुओं को एक्सप्लोर करती है. फिल्म में सस्पेंस किसी मर्डर मिस्ट्री को लेकर नहीं बल्कि एक शख्स की सोच, उसके भ्रम और जुनून का है. इसे हिचकॉक की सबसे कॉम्प्लेक्स फिल्म माना गया है. वह कैमरे को आंख की तरह इस्तेमाल करने में यकीन करते थे. जो झूठ तो नहीं बोलती लेकिन हमेशा गुमराह करती है.
लेकिन हिचकॉक सस्पेंस की दुनिया से ही क्यों जुड़े? इसका जवाब उनके बचपन में छिपा है. हिचकॉक के बचपन का उनकी फिल्मों पर गहरा असर पड़ा. उन्होंने खुद कई इंटरव्यू में कुबूल किया है कि उनकी कहानियों में मौजूद डर, अकेलेपन और अपराधबोध का भाव उनके बचपन की छाप है.
लंदन में जन्मे और पले-बढ़े हिचकॉक तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. बचपन में उनका ज्यादातर समय एकाकीपन में बीता. अपनी ऑटोबायोग्राफी में हिचकॉक लिखते हैं कि मैं बचपन में ज्यादा नहीं खेल पाया क्योंकि मुझे इसकी इजाजत नहीं दी. पूरा समय पढ़ने और चर्च जाने में बीतता था. घर का परिवेश बेहद सख्त था. कैथोलिक घर में जन्मे हिचकॉक को बचपन में सिखाया गया कि हर गलती की सजा मिलती है. इससे उनके मन में अपराधबोध और सजा का डर हमेशा बना रहा. कुछ ऐसा ही हमें हिचकॉक की फिल्मों में भी देखने को मिलता है, जब उनकी फिल्मों के किरदार या तो अकेलेपन से जूझते दिखाए गए हैं या फिर डर के साए में जिंदगी जीते.
हिचकॉक ने एक दफा कहा था कि बचपन में मैं बहुत डरपोक था. हर बात से डरता था, पुलिस से, पनिशमेंट से और यहां तक की अजनबियों से भी. इसी डर और गिल्ट को मैंने अपनी फिल्मों में लोगों को महसूस कराने की सोची.
1980 में नाइटहुड की उपाधि पाने वाले हिचकॉक ने अपने लंबे और शानदार करियर में 50 से ज्यादा फिल्में बनाईं. वह एक ऐसे कहानीकार थे, जिन्होंने पूरी दुनिया की फिल्म इंडस्ट्री पर गहरा असर डाला. उनकी कहानी कहने के तरीकों और सस्पेंस की कला से देश-दुनिया के कई छोटे-बड़े निर्देशक प्रभावित हुए. मार्टिन स्कोर्सेज से लेकर क्रिस्टोफर नोलन, डेविड फिंचर और अनुराग कश्यप उनसे सीधे तौर पर प्रभावित हैं. तभी तो स्टेनली क्यूब्रिक की The Shining, स्टीवन स्पीलबर्ग की Jaws, मार्टिन स्कॉर्सेज की Shutter Island, नोलन की Momento, डेविंड फिंचर की Gone Girl और Seven में हिचकॉक के सिनेमा का अक्स नजर आता है.
हिचकॉक की फिल्मों को सिर्फ मनोरंजन के लिहाज से नहीं बल्कि कहानी कहने के मास्टरक्लास के तौर पर देखा जाता है. कैमरा मूवमेंट से लेकर म्यूजिक का सही इस्तेमाल और सस्पेंस क्रिएशन में उन्हें मास्टर माना जाता है. दुनियाभर के कई प्रतिष्ठित ड्रामा स्कूलों में हिचकॉक की फिल्मों को डिटेल में पढ़ाया जाता है. उनका सिनेमा फिल्म केस स्टडी के तौर पर एक्टिंग स्कूलों में शामिल है.
अगर हिचकॉक ना होते तो यकीनन आज की सस्पेंस और थ्रिलर फिल्मों का चेहरा कुछ और ही होता. उन्होंने अपनी दमदार विजुअल स्टोरीटेलिंग से कहानी कहने के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया. वह मानते थे कि उनकी फिल्में Jigsaw Puzzle की तरह हैं, जिन्हें सही तरीके से समझने की जरूरत है.
Watch Live TV in Hindi
Watch Live TV in Englishचार लोग एक टेबल पर बैठकर बातचीत कर रहे हैं और बम अचानक फट जाए तो इसे सरप्राइज कहा जाएगा. लेकिन अगर दर्शकों को पहले ही बता दिया जाए कि बम उस टेबल के नीचे रखा है और वह किसी भी पल फट सकता है तो यह दर्शकों के लिए थ्रिलिंग होगा... और यही सस्पेंस है. Father of Suspense के नाम से मशहूर अल्फ्रेड हिचकॉक ने 1962 में एक इंटरव्यू के दौरान अपनी Bomb Theory दुनिया के सामने रखी थी. वह एक ऐसे फिल्मकार थे जिन्हें पर्दे पर सस्पेंस क्रिएट करने के लिए तामझाम की जरूरत नहीं पड़ती थी. वह दर्शकों को डराने के लिए मनोविज्ञान को टूल के तौर पर इस्तेमाल करते थे. वह पर्दे पर सस्पेंस दिखाने के लिए दर्शकों के दिमाग में डर और अनिश्चितता का माहौल पैदा कर देते थे, जिसे आज भी दुनियाभर के फिल्मकार कॉपी करने से नहीं चूकते. उन्होंने 100 साल पहले दुनिया को सस्पेंस और सरप्राइज का अंतर समझा दिया था. वह आज जिंदा होते तो 125 बरस के हो गए होते.
1899 में लंदन की गलियों में पैदा हुए हिचकॉक ने दुनिया को सस्पेंस और थ्रिलर की ए,बी, सी और डी से वाकिफ कराया. दुनिया को नए लैंस से सिनेमा देखना सिखाया. उनका लैंस इंसान के भीतर के डर और कौतूहल को एक साथ कैप्चर करता था. वह हमेशा कहते थे कि पर्दे पर डर को दिखाने के बजाए दर्शकों को महसूस कराना ज्यादा जरूरी होता है.
थ्रिलर फिल्मों के पुरोधा बन गए हिचकॉक हमेशा कहते रहे कि सस्पेंस तभी कारगर साबित होता है, जब दर्शकों को फिल्म के किरदारों से ज्यादा जानकारी मालूम हो. सस्पेंस का मतलब सिर्फ शॉक देना नहीं है बल्कि असली सस्पेंस तब है, जब दर्शक जानते हो कि कुछ गलत होने जा रहा है लेकिन कब होगा, ये किसी को मालूम नहीं.
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत इंजीनियरिंग कंपनी में ड्राइंग डिजाइनर के तौर पर की लेकिन 1920 में किस्मत उन्हें शोबिजनेस में खींच लाई. शुरुआत में उन्होंने टाइटल कार्ड डिजाइनर के तौर पर काम किया लेकिन फिर असिस्टेंट डायरेक्टर का जिम्मा संभालते-संभालते डायरेक्टर की कुर्सी तक पहुंच गए. उनकी पहली फिल्म 1925 की The Pleasure Garden थी. यह साइलेंट फिल्मों का दौर था. लेकिन सिनेमा की उस चुप्पी में भी उन्होंने अपनी विजुअल स्टोरीटेलिंग का लोहा मनवा लिया था.
हिचकॉक को इंसानी मन की गहराइयों में गोते लगाने का जुनून था. वह मानते थे कि सस्पेंस तभी सफल होगा, जब दर्शकों को मालूम हो कि कुछ तो बुरा होने वाला है लेकिन कैसे और कब होगा... इस पर रहस्य बना रहे.
उनकी फिल्में अपराध, मनोविज्ञान, मानवीय संवेदनाओं और नैतिक दुविधाओं के ईर्द-गिर्द बुनी होती थीं. लेकिन Who is Criminal के कॉन्सेप्ट को खारिज कर उन्होंने How to Capture Him/Her पर पूरा जोर दिया. उनका यही एक्सपेरिमेंटल स्टाइल उन्हें आम थ्रिलर फिल्ममेकर्स से अलग बनाता था. वह मानते थे कि दर्शकों को पहले ही खतरे से वाकिफ करा दो ताकि उनका मन डर और उम्मीद के भावों को लिए पैंडूलम की तरह झूलता रहे.
हिचकॉक के फिल्में बनाने से पहले दुनियाभर में जितनी भी सस्पेंस फिल्में बनती थी. वह सब कातिल कौन है तक सीमित रहती थी. लेकिन हिचकॉक ने सस्पेंस को साइंस और साइकोलॉजी से जोड़ा. उन्होंने सस्पेंस को क्या होगा से कैसे महसूस होगा में तब्दील कर दिया था. उन्होंने सस्पेंस को सरप्राइज और हॉरर से बिल्कुल अलग कर दिया.
उनका कहना था कि डर का असली मजा उसके इंतजार में है, ना कि उसके होने में. हिचकॉक की Vertigo, Psycho and Rear Window जैसी फिल्में दिखाती हैं कि कभी-कभी सबसे बड़ा खतरा बाहर नहीं, आपके भीतर होता है. वह कहानी के प्लॉट के ईर्द-गिर्द पूरी फिल्म को नहीं गढ़ते थे बल्कि कैरेक्टर की साइकोलॉजी और उनकी कमियों पर जोर देते थे. कोई आम आदमी असाधारण परिस्थितियों में किस तरह रिएक्ट करेगा, वह उसी से सस्पेंस को बाहर निकालते थे.
हिचकॉक शायद दुनिया के पहले और अब तक के आखिरी ऐसे फिल्मकार हैं, जो अपनी तकरीबन हर फिल्म की शुरुआत में कुछ सेकंड के लिए नजर आते थे. फिल्म शुरू होते ही कभी बस से उतरते, कभी सड़क क्रॉस करते तो कभी फिल्म के नायक के बगल में खड़े होकर अखबार पढ़ते हिचकॉक को दर्शकों की नजरें ढूंढ रही होती थीं.
हालांकि, इसके पीछे की कहानी भी काफी इंटरेस्टिंग है. फिल्म में कैमियो के लिए जिस शख्स को सेट पर आना था. वह किसी कारणवश नहीं आ पाया तो हिचकॉक ने उस तीन सेकंड के रोल को अदा किया. लेकिन वही शॉकिंग एलिमेंट दर्शकों को पसंद आया. इसके बाद हिचकॉक अपनी हर फिल्म की शुरुआत में कुछ सेकंड के लिए पर्दे पर दिखने लगा. यह कॉन्सेप्ट इतना पॉपुलर हुआ कि लोग थिएटर्स में जल्दी पहुंचकर फिल्म में हिचकॉक के कैमियो को ढूंढा करते थे.
हिचकॉक की खास बात ये थी कि वह सस्पेंस को धीरे-धीरे तनाव के साथ बिल्ड-अप करते थे. 1960 की उनकी फिल्म Psycho उस दौर की पहली ऐसी फिल्म थी जिसमें किसी लीड कैरेक्टर का फिल्म के बीच में मर्डर कर दिया गया. ये दर्शकों के लिए एक शॉकिंग एलिमेंट था क्योंकि उसी लीड एक्ट्रेस को देखने के लिए दर्शक बड़ी संख्या में सिनेमा हॉल पहुंचे थे. लेकिन अपने समय की उस मशहूर अदाकारा जैनेट को फिल्म के बीचोबीच मारने का रिस्क हिचकॉक जैसे डायरेक्टर ही ले सकते हैं. ये हिचकॉक के सिनेमा का ही कमाल है कि यह सीन सिनेमाई इतिहास का सबसे चर्चित बाथरूम मर्डर बन गया. लेकिन इस सीन की सबसे खास बात ये थी कि मर्डर के दौरान वायलेंस दिखाया नहीं गया बल्कि महसूस कराया गया. जैनेट के शरीर पर चाकू का एक भी वार कैमरे पर नहीं दिखाया गया. जैनेट की चीखें और लाउड म्यूजिक ने हर एक फ्रेम में तनाव पैदा किया. यह एक ऐसा शावर सीन था, जिसने सस्पेंस और थ्रिलर फिल्मों का चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया.
वहीं, हिचकॉक की Rear Window एक ऐसे फोटोग्राफर की कहानी है, जिसके पैर में प्लास्टर लगा है और वह दिनभर अपनी व्हिलचेयर पर बैठकर दूरबीन से सामने वाली बिल्डिंग के लोगों को ऑब्जर्व करता है. वह धीरे-धीरे ऑब्जर्व करता है कि सामने वाले अपार्टमेंट में रहने वाले शख्स ने अपनी बीवी का कत्ल कर दिया है.
हिचकॉक ने इस पूरी फिल्म में दर्शकों को हीरो के लैंस पर देखने को मजबूर किया है. मतलब दर्शक उतना ही जानते हैं जितना हीरो जानता है. हिचकॉक सीधे कुछ नहीं दिखाते बल्कि वो दर्शकों के दिमाग में डर पैदा कर देते हैं. यही हिचकॉक का मास्टरस्ट्रोक था कि उन्होंने दर्शकों को इस मर्डर का गवाह बना दिया. एक खिड़की से पूरी कहानी कह देना एक बिल्कुल नया एक्सपेरिमेंट था. इसी फिल्म से हिचकॉक ने दुनिया को MacGuffin का कॉन्सेप्ट भी दिया. एक ऐसा कॉन्सेप्ट जो स्टोरी को आगे बढ़ाता है पर फिल्म में उसका असली महत्व कुछ खास नहीं होता. जैसे इस फिल्म में दूरबीन वह एलिमेंट है जबकि Psycho में जैनेट ने जो पैसे चुराए वह MacGuffin इफेक्ट है लेकिन बाद में वह पैसे फिल्म में महत्वहीन हो जाते हैं.
इसी तरह Vertigo को हिचकॉक की सबसे गहरी और साइकोलॉजिकल फिल्म माना जाता है. ये फिल्म सस्पेंस से कहीं ज्यादा जुनून, अपराधबोध और आइडेंटिटी क्राइसिस के पहलुओं को एक्सप्लोर करती है. फिल्म में सस्पेंस किसी मर्डर मिस्ट्री को लेकर नहीं बल्कि एक शख्स की सोच, उसके भ्रम और जुनून का है. इसे हिचकॉक की सबसे कॉम्प्लेक्स फिल्म माना गया है. वह कैमरे को आंख की तरह इस्तेमाल करने में यकीन करते थे. जो झूठ तो नहीं बोलती लेकिन हमेशा गुमराह करती है.
लेकिन हिचकॉक सस्पेंस की दुनिया से ही क्यों जुड़े? इसका जवाब उनके बचपन में छिपा है. हिचकॉक के बचपन का उनकी फिल्मों पर गहरा असर पड़ा. उन्होंने खुद कई इंटरव्यू में कुबूल किया है कि उनकी कहानियों में मौजूद डर, अकेलेपन और अपराधबोध का भाव उनके बचपन की छाप है.
लंदन में जन्मे और पले-बढ़े हिचकॉक तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. बचपन में उनका ज्यादातर समय एकाकीपन में बीता. अपनी ऑटोबायोग्राफी में हिचकॉक लिखते हैं कि मैं बचपन में ज्यादा नहीं खेल पाया क्योंकि मुझे इसकी इजाजत नहीं दी. पूरा समय पढ़ने और चर्च जाने में बीतता था. घर का परिवेश बेहद सख्त था. कैथोलिक घर में जन्मे हिचकॉक को बचपन में सिखाया गया कि हर गलती की सजा मिलती है. इससे उनके मन में अपराधबोध और सजा का डर हमेशा बना रहा. कुछ ऐसा ही हमें हिचकॉक की फिल्मों में भी देखने को मिलता है, जब उनकी फिल्मों के किरदार या तो अकेलेपन से जूझते दिखाए गए हैं या फिर डर के साए में जिंदगी जीते.
हिचकॉक ने एक दफा कहा था कि बचपन में मैं बहुत डरपोक था. हर बात से डरता था, पुलिस से, पनिशमेंट से और यहां तक की अजनबियों से भी. इसी डर और गिल्ट को मैंने अपनी फिल्मों में लोगों को महसूस कराने की सोची.
1980 में नाइटहुड की उपाधि पाने वाले हिचकॉक ने अपने लंबे और शानदार करियर में 50 से ज्यादा फिल्में बनाईं. वह एक ऐसे कहानीकार थे, जिन्होंने पूरी दुनिया की फिल्म इंडस्ट्री पर गहरा असर डाला. उनकी कहानी कहने के तरीकों और सस्पेंस की कला से देश-दुनिया के कई छोटे-बड़े निर्देशक प्रभावित हुए. मार्टिन स्कोर्सेज से लेकर क्रिस्टोफर नोलन, डेविड फिंचर और अनुराग कश्यप उनसे सीधे तौर पर प्रभावित हैं. तभी तो स्टेनली क्यूब्रिक की The Shining, स्टीवन स्पीलबर्ग की Jaws, मार्टिन स्कॉर्सेज की Shutter Island, नोलन की Momento, डेविंड फिंचर की Gone Girl और Seven में हिचकॉक के सिनेमा का अक्स नजर आता है.
हिचकॉक की फिल्मों को सिर्फ मनोरंजन के लिहाज से नहीं बल्कि कहानी कहने के मास्टरक्लास के तौर पर देखा जाता है. कैमरा मूवमेंट से लेकर म्यूजिक का सही इस्तेमाल और सस्पेंस क्रिएशन में उन्हें मास्टर माना जाता है. दुनियाभर के कई प्रतिष्ठित ड्रामा स्कूलों में हिचकॉक की फिल्मों को डिटेल में पढ़ाया जाता है. उनका सिनेमा फिल्म केस स्टडी के तौर पर एक्टिंग स्कूलों में शामिल है.
अगर हिचकॉक ना होते तो यकीनन आज की सस्पेंस और थ्रिलर फिल्मों का चेहरा कुछ और ही होता. उन्होंने अपनी दमदार विजुअल स्टोरीटेलिंग से कहानी कहने के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया. वह मानते थे कि उनकी फिल्में Jigsaw Puzzle की तरह हैं, जिन्हें सही तरीके से समझने की जरूरत है.
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