• Wed, Sep 2025

Steel Slag Roads: अमेरिका-ओमान तक पहुंची स्टील की सड़क की भारतीय तकनीक, $2 ट्रिलियन के बाजार में 1 करोड़ जॉब्स

Steel Slag Roads: अमेरिका-ओमान तक पहुंची स्टील की सड़क की भारतीय तकनीक, $2 ट्रिलियन के बाजार में 1 करोड़ जॉब्स

वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआरआरआई) की स्टील स्लैग तकनीक से बनाई जाने वाली सड़क का फार्मूला, अब अमेरिका के शिकागो व ओमान तक जा पहुंचा है। इन देशों में भारत के उक्त संस्थानों द्वारा बनाई गई तकनीक से स्टील स्लैग रोड बनाए जा रहे हैं। सीआरआरआई के मुख्य वैज्ञानिक सतीश पांडे ने बताया, स्टील स्लैग रोड तकनीक भारत के सड़क अवसंरचना क्षेत्र के लिए एक गेम चेंजर है। इससे भारत की सर्कुलर इकॉनॉमी की दिशा को गति मिलेगी। सतीश पांडे के मुताबिक, इसके माध्यम से वर्ष 2050 तक $2 ट्रिलियन से अधिक का बाजार खड़ा होने की संभावना है। ऐसे में लगभग एक करोड़ नौकरियां उत्पन्न हो सकती हैं।
मौजूदा समय में प्रतिवर्ष 1.2 बिलियन एग्रीगेट की खपत हो रही है
मुख्य वैज्ञानिक सतीश पांडे ने शुक्रवार को बताया कि किसी भी सड़क के निर्माण में मुख्य सामग्री नेचुरल एग्रीगेट होता है। मौजूदा समय में प्रतिवर्ष 1.2 बिलियन एग्रीगेट की खपत हो रही है। आने वाले समय में इस एग्रीगेट की खपत बहुत तेजी से बढ़ेगी। इससे पर्यावरण को भी नुकसान होता है, क्योंकि इसके लिए कहीं तो माइनिंग करनी ही पड़ेगी। स्टील स्लैग रोड तकनीक से पर्यावरण को बचाया जा सकता है। किसी भी सड़क के निर्माण में 95 प्रतिशत मात्रा, एग्रीगेट यानी रोड़ी बजरी की होती है। ऊपर की परत, जिसका हिस्सा केवल पांच फीसदी रहता है, उसमें सीमेंट/बिटुमिनस रहता है। वैज्ञानिक रूप से प्रोसेस की गई स्टील स्लैग रोड, पारंपरिक निर्माण सामग्री की तुलना में महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करती है।
स्टील स्लैग रोड सामान्यत: 30 से 40 प्रतिशत अधिक लागत प्रभावी
स्टील स्लैग रोड सामान्यत: 30 से 40 प्रतिशत अधिक लागत प्रभावी होती है। इसके अलावा पारंपरिक बिटुमिनस रोड की तुलना में तीन गुणा अधिक मजबूत होती है। पारंपरिक बिटुमिनस रोड, बहुत जल्द टूट जाती है। चार पांच वर्ष में तो इसकी लेयर बदलनी ही पड़ती है। अगर पानी ज्यादा समय तक खड़ा रहे तो सड़क टूट जाती है। दूसरी ओर, स्टील स्लैग रोड, पारंपरिक बिटुमिनस रोड से तीन गुणा अधिक चलती है। कम से कम 12 वर्ष तक स्टील स्लैग रोड को मरम्मत की जरुरत ही नहीं होती।

देश में प्रतिवर्ष 19 मिलियन टन से अधिक स्टील स्लैग होता है उत्पन्न
देश में प्रतिवर्ष 19 मिलियन टन से अधिक स्टील स्लैग उत्पन्न होता है। बिना प्रोसेस किए स्लैग का उपयोग इस पर आधारित निर्माण सामग्री की यांत्रिक गुणवत्ता और दीर्घकालिक स्थिरता को खतरे में डालता है। एएम/एनएस इंडिया ने काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च और सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट के साथ साझेदारी की है। यह कंपनी सड़क निर्माण में प्राकृतिक स्रोतों के स्थान पर प्रोसेस्ड स्टील स्लैग एग्रीगेट्स के उपयोग की तकनीक पर जोर देती है। यह देश की पहली ऐसी कंपनी बनी है, जिसे सीएसआईआर व सीआरआरआई द्वारा स्टील स्लैग वैल्यूराइजेशन टेक्नोलॉजी का लाइसेंस प्राप्त हुआ है। यह संस्था, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन कार्यरत एक राष्ट्रीय स्तर की अग्रणी संस्था है।

सतीश पांडे ने बताया कि इस लाइसेंस के साथ एएम/एनएस इंडिया, जिसने हजीरा में भारत की पहली 'ऑल स्टील स्लैग रोड' के निर्माण में हमारा सहयोग लिया था, अब विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए स्लैग का उत्पादन, विपणन अथवा विक्रय सड़क निर्माण के लिए कर सकती है।

इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में 'वेस्ट-टू-वेल्थ' की संभावना होगी पैदा
एएम/एनएस इंडिया के वरिष्ठ पदाधिकारी, रंजन धर के अनुसार, यह तकनीक सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में 'वेस्ट-टू-वेल्थ' की संभावनाओं का सफलतापूर्वक अनलॉक होगा। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत देश की अग्रणी वैज्ञानिक संस्था से प्राप्त यह लाइसेंस, सर्कुलर इकॉनॉमी और भारत के नेट-ज़ीरो लक्ष्य की दिशा में कंपनी के नेतृत्व को और अधिक मजबूती प्रदान करता है। व्यापक उपयोग के साथ यह तकनीक प्राकृतिक एग्रीगेट्स को प्रतिस्थापित करने की क्षमता रखती है, जिससे पर्यावरणीय प्रभाव कम होगा और प्राकृतिक संसाधनों पर बोझ भी घटेगा।


भारत के स्टील उत्पादकों द्वारा वित्त वर्ष 2030-31 तक स्टील उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 300 मिलियन टन तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके चलते वित्त वर्ष 2030 तक स्टील स्लैग उत्पादन की मात्रा 60 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान है। स्टील मंत्रालय, इस तकनीक को अपनाने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के साथ सहयोग कर रहा है।