भारत ने अमेरिका से चल रहे टैरिफ तनाव के बीच इकोनॉमी को और मजबूत करने के लिए बड़ा फैसला लिया है. भारतीय रिजर्व बैंक ने अमेरिकी ट्रेजरी बिलों में निवेश की तुलना में अपने गोल्ड भंडार में बढ़ोतरी की है. भारत ने जहां पिछले साल जून में यूएस ट्रेजरी में $242 बिलियन यानी करीब 21 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया था. उसे इस साल घटाकर 227 बिलियन डॉलर यानी 20 लाख करोड़ रुपये कर दिया है. इसके पीछे का मकसद देश का अपने विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करने का है.
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डॉलर की हिस्सेदारी कम होना ये दिखाता है कि दुनिया भर के देश अब अपने विदेशी मुद्रा भंडार को डाइवर्सिफाई कर रहे हैं. बैंक ऑफ बड़ौदा के चीफ इकॉनमिस्ट मदन सबनवीस के मुताबिक, इंडिया के रिजर्व्स में गोल्ड लगातार बढ़ रहा है और बाकी फॉरेन करेंसी एसेट्स में भी डाइवर्सिटी आई है.
इसी वजह से इंडिया, चीन और ब्राजील जैसे देशों में उतार-चढ़ाव दिखा है. पिछले 12 महीनों में डॉलर काफी वॉलेटाइल रहा है और इसी दौरान आरबीआई ने करीब 39.22 मेट्रिक टन गोल्ड खरीदा है. 27 जून 2025 तक इंडिया के रिजर्व्स में 879.98 मेट्रिक टन सोना था, जो पिछले साल 840.76 मेट्रिक टन था.
नकदी का रिस्क कम करना
IDFC First Bank की इकॉनमिस्ट गौरा सेनगुप्ता के हवाले से ईटी ने बताया है कि UST (अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड्स) के यील्ड्स गिरने के बावजूद इंडिया की होल्डिंग एक साल में 14.5 अरब डॉलर कम हो गई. इसका मतलब है कि इंडिया ने UST से हटकर अपने फॉरेन रिजर्व्स को डाइवर्सिफाई किया है और गोल्ड में इन्वेस्टमेंट बढ़ाया है. इससे अमेरिका-विशेष फैक्टर्स के चलते होने वाले नुकसान के रिस्क को कम किया जा रहा है.
डोनाल्ड ट्रंप के पावर में आने से पहले, दिसंबर में इंडिया का अमेरिकी ट्रेजरी बिल्स का स्टॉक सबसे लो लेवल पर था. 22 अगस्त 2025 तक इंडिया के पास 227 अरब डॉलर के करीब USTs थे, जो उसके 690 अरब डॉलर के रिजर्व्स का हिस्सा हैं. दूसरी तरफ, जापान और ब्रिटेन के बाद अमेरिका के ट्रेजरी बिल्स का तीसरा सबसे बड़ा होल्डर चीन भी अपनी होल्डिंग घटा रहा है. जून 2024 में चीन के पास 780 अरब डॉलर थे, जो जून 2025 में घटकर 756 अरब डॉलर रह गए. इसके उलट, इजराइल ने इसी दौरान इस एसेट क्लास में इन्वेस्टमेंट बढ़ा दिया है.