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100 साल पहले ऐसा हुआ करता था हवाई सफर, प्लेन के अंदर ऐसी होती थी सीटें, लेकिन क्या AC की सुविधा होती थी?

100 साल पहले ऐसा हुआ करता था हवाई सफर, प्लेन के अंदर ऐसी होती थी सीटें, लेकिन क्या AC की सुविधा होती थी?

How People Travel 100 Years Ago: हवाई यात्रा 100 साल पहले कैसी हुआ करती थी, ये सवाल कई लोगों का रहता है अगर आप भी यही सोचते हैं, तो जानिए इस लेख के जरिए आखिर 100 साल पहले हवाई यात्रा कैसी हुआ करती थी।

हवाई यात्रा को आज हम आराम और लग्जरी का दूसरा नाम मानते हैं, एयर-कंडीशंड केबिन, मुलायम सीटें, स्वादिष्ट खाना, इन-फ्लाइट एंटरटेनमेंट और लंबी उड़ानों में भी चैन की नींद। लेकिन जरा सोचिए, करीब 100 साल पहले जब हवाई सफर की शुरुआत हुई थी, तब यात्रियों का अनुभव कैसा रहा होगा?

1920 और 1930 के दशक की उड़ानों की कुछ तस्वीरें हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, जिन्हें देखकर साफ समझ आता है कि उस जमाने में हवाई यात्रा बेहद असुविधाजनक और थकाऊ हुआ करती थी। न आरामदायक सीटें थीं, न शोर-शराबे से बचने का कोई इंतजाम, और न ही खाने-पीने की उतनी सुविधाएं। लंबे-लंबे सफर में यात्री अक्सर थकान और बेचैनी महसूस करते थे। चलिए बताते हैं उस दौरान कैसा था हवाई सफर?


उस दौरान ये हुआ करता था टिकट 
उस दौरान ये हुआ करता था टिकट
(All photo: history.season@insta)उस दौरान ये हुआ करता था टिकट

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1914 में पहली बार शेड्यूल पैसेंजर फ्लाइट ने उड़ान भरी थी और वहीं से हवाई यात्रा का नया दौर शुरू हुआ। इसके बाद कई एयरलाइंस कंपनियां बनीं, लेकिन उस समय हवाई सफर आम लोगों के लिए नहीं था, बल्कि सिर्फ अमीरों की पहुंच तक सीमित था। उदाहरण के लिए, न्यूयॉर्क से लॉस एंजेलिस का राउंड-ट्रिप टिकट करीब 260 डॉलर में मिलता था, जो आज के हिसाब से हजारों डॉलर के बराबर बैठता है।


कई मौसम की मार झेलनी पड़ती थी 
कई मौसम की मार झेलनी पड़ती थी
कई मौसम की मार झेलनी पड़ती थी

लेकिन महंगा टिकट खरीदने के बावजूद यात्रियों को आराम की कोई गारंटी नहीं होती थी। उस दौर के जहाज प्रेशराइज्ड नहीं होते थे, इसलिए उन्हें कम ऊंचाई पर उड़ना पड़ता था। इसका मतलब था कि यात्रियों को सीधे मौसम की मार झेलनी पड़ती थी, कभी तूफान, कभी तेज हवा, तो कभी हड्डियां कंपा देने वाली ठंड। केबिन में तापमान नियंत्रित करने की सुविधा भी नहीं थी, इस वजह से यात्री अकसर ठिठुरते रहते थे और कई बार तो उड़ान के दौरान बीमार भी पड़ जाते थे।


क्या हुआ करता था फ्लाइट अटेंडेंट्स का काम
क्या हुआ करता था फ्लाइट अटेंडेंट्स का काम
क्या हुआ करता था फ्लाइट अटेंडेंट्स का काम

1930 में पहली बार एक एयरलाइन ने स्टेवर्डेस को काम पर रखा। उस दौर में ज्यादातर स्टेवर्डेस प्रशिक्षित नर्सें होती थीं, जिनकी जिम्मेदारी यात्रियों की एयर-सिकनेस और घबराहट को संभालना होती थी। लेकिन उन शुरुआती फ्लाइट्स की सबसे बड़ी मुश्किल थी विमान का तेज शोर।

शोर इतना अधिक होता था कि कई यात्री और फ्लाइट अटेंडेंट तक सुनने की समस्या का शिकार हो जाते थे। इसी वजह से बातचीत करने के लिए अटेंडेंट्स को मेगाफोन का इस्तेमाल करना पड़ता था। असल में शुरुआती पैसेंजर प्लेन ज्यादातर वही पुराने सैन्य विमान थे जिन्हें वर्ल्ड वॉर के बाद मॉडिफाई करके बनाया गया था। उनमें न तो आराम की सुविधा होती थी और न ही सुरक्षा के पक्के इंतज़ाम।


1930 के दशक में हुआ बदलाव 
1930 के दशक में हुआ बदलाव
1930 के दशक में हुआ बदलाव

1930 के दशक के आखिर तक हवाई यात्रा में सुधार होने लगे। उस समय कुछ नए विमान बाजार में आए, जिनमें यात्रियों के लिए पहले से ज्यादा आराम की सुविधा थी। यही दौर था जब हवाई सफर में बदलाव की नींव रखी गई, जिसने आगे चलकर आज की आधुनिक और लग्ज़री उड़ानों का रूप ले लिया।