बड़ा सवाल: भारत और अफगानिस्तान, जो कभी एक ही साम्राज्य का हिस्सा थे, उनके रिश्ते कभी अच्छे तो कभी तनावपूर्ण रहे हैं. 1999 में इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट हाइजैकिंग इस रिश्ते की सबसे बड़ी चोट रही है. ऐसे में जयशंकर तालिबान से बात क्यों कर रहे हैं?
सीधा जवाब: चाणक्य की मंडल थ्योरी के मुताबिक, अगर दो राज्यों के बीच कोई तीसरा राज्य है, तो वो एक-दूसरे के दोस्त हो सकते हैं क्योंकि उनके दुश्मन एक जैसे होते हैं. आसान भाषा में कहें तो - दुश्मन का दुश्मन, दोस्त होता है.
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अफगानिस्तान हमेशा से हमारा दोस्त था?
इसका जवाब हिमेश रेशमिया की सुपर-फ्लॉप फिल्म रेडियो की टैगलाइन में छुपा है. जो कहती है - 'इट्स कॉम्प्लिकेटेड' -, मतलब ये थोड़ा उलझा हुआ है.
बड़ा सवाल: भारत और अफगानिस्तान, जो कभी एक ही साम्राज्य का हिस्सा थे, उनके रिश्ते कभी अच्छे तो कभी तनावपूर्ण रहे हैं. 1999 में इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट हाइजैकिंग इस रिश्ते की सबसे बड़ी चोट रही है. ऐसे में जयशंकर तालिबान से बात क्यों कर रहे हैं?
सीधा जवाब: चाणक्य की मंडल थ्योरी के मुताबिक, अगर दो राज्यों के बीच कोई तीसरा राज्य है, तो वो एक-दूसरे के दोस्त हो सकते हैं क्योंकि उनके दुश्मन एक जैसे होते हैं. आसान भाषा में कहें तो - दुश्मन का दुश्मन, दोस्त होता है.
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अफगानिस्तान हमेशा से हमारा दोस्त था?
इसका जवाब हिमेश रेशमिया की सुपर-फ्लॉप फिल्म रेडियो की टैगलाइन में छुपा है. जो कहती है - 'इट्स कॉम्प्लिकेटेड' -, मतलब ये थोड़ा उलझा हुआ है.
बड़ा सवाल: भारत और अफगानिस्तान, जो कभी एक ही साम्राज्य का हिस्सा थे, उनके रिश्ते कभी अच्छे तो कभी तनावपूर्ण रहे हैं. 1999 में इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट हाइजैकिंग इस रिश्ते की सबसे बड़ी चोट रही है. ऐसे में जयशंकर तालिबान से बात क्यों कर रहे हैं?
सीधा जवाब: चाणक्य की मंडल थ्योरी के मुताबिक, अगर दो राज्यों के बीच कोई तीसरा राज्य है, तो वो एक-दूसरे के दोस्त हो सकते हैं क्योंकि उनके दुश्मन एक जैसे होते हैं. आसान भाषा में कहें तो - दुश्मन का दुश्मन, दोस्त होता है.
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अफगानिस्तान हमेशा से हमारा दोस्त था?
इसका जवाब हिमेश रेशमिया की सुपर-फ्लॉप फिल्म रेडियो की टैगलाइन में छुपा है. जो कहती है - 'इट्स कॉम्प्लिकेटेड' -, मतलब ये थोड़ा उलझा हुआ है.
बड़ा सवाल: भारत और अफगानिस्तान, जो कभी एक ही साम्राज्य का हिस्सा थे, उनके रिश्ते कभी अच्छे तो कभी तनावपूर्ण रहे हैं. 1999 में इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट हाइजैकिंग इस रिश्ते की सबसे बड़ी चोट रही है. ऐसे में जयशंकर तालिबान से बात क्यों कर रहे हैं?
सीधा जवाब: चाणक्य की मंडल थ्योरी के मुताबिक, अगर दो राज्यों के बीच कोई तीसरा राज्य है, तो वो एक-दूसरे के दोस्त हो सकते हैं क्योंकि उनके दुश्मन एक जैसे होते हैं. आसान भाषा में कहें तो - दुश्मन का दुश्मन, दोस्त होता है.
अफगानिस्तान हमेशा से हमारा दोस्त था?
इसका जवाब हिमेश रेशमिया की सुपर-फ्लॉप फिल्म रेडियो की टैगलाइन में छुपा है. जो कहती है - 'इट्स कॉम्प्लिकेटेड' -, मतलब ये थोड़ा उलझा हुआ है.
आम राय यही है कि अफगानिस्तान शुरु से ही भारत के लिए परेशानी का सबब रहा है - खासकर महाभारत काल से. इस भारतीय महाकाव्य में कौरव और पांडव के बीच युद्ध हुआ तो इसकी एक बड़ी वजह जुए का उस्ताद, गांधार का एक धूर्त राजकुमार शकुनी ही था. गांधार, जो कभी भारत का हिस्सा माना जाता था, आज का कंधार माना जाता है - अफगानिस्तान के दक्षिण में, अर्घंदाब नदी के पास स्थित एक शहर. कुछ विद्वानों का मानना है कि अर्घंदाब नदी, हेलमंद (या वैदिक हरख्वती) की एक सहायक नदी है और यही वैदिक सरस्वती नदी रही होगी. लेकिन ये एक अलग बहस का विषय है.
भारत और अफगानिस्तान - एक साझा इतिहास: इंडो-आर्यन माइग्रेशन थ्योरी के मुताबिक, गांधार एक ट्रांजिट पॉइंट यानी रास्ता था. भाषाविदों का दावा है कि काबुल (संस्कृत में कुभ) और बाल्क (संस्कृत में बालिक) जैसे नाम संस्कृत से जुड़े हुए हैं, जो इस साझा इतिहास की ओर इशारा करते हैं. मौर्यकाल से लेकर कई सदियों तक, आज के अफगानिस्तान का एक बड़ा हिस्सा भारत के साम्राज्य में शामिल रहा था.
फाइनल ब्रेकअप:
भारत के साथ सदियों से चले आ रहे कभी साथ-साथ, तो कभी अलग-अलग रहने वाले रिश्ते का पक्का वाला ब्रेकअप 18वीं सदी में दुर्रानी साम्राज्य के जमाने में हुआ. इसके बाद ब्रिटिशों ने अफगानिस्तान को 'ग्रेट गेम' में रूस के खिलाफ एक बफर स्टेट बना दिया - जहां दोनों बड़ी ताकतों के बीच जोर आजमाइश चलती रही. 1973 में जब अफगानिस्तान एक गणराज्य बना, तो भारत ने एक दोस्त की तरह उसे फौरन मान्यता दे दी. ये नाज़ुक सी दोस्ती 1996 तक चली - जब तालिबान का उदय हुआ और अफगानिस्तान ने एक दुश्मन का रूप ले लिया.
तालिबान ने हमें दुश्मन क्यों माना?
तालिबान एक कट्टरपंथी लड़ाकू संगठन है और जिसकी जड़ें पाकिस्तान में थीं. 1996 में वो अफगानिस्तान में सिविल वॉर जीतकर सत्ता में आया. भारत के पास इस संगठन से दूरी बरतने की कई वजहें थीं - मसलन पाकिस्तान से मिल रहा समर्थन, तालिबान की कट्टर सोच, और मानव अधिकारों का उल्लंघन. इन्हीं वजहों से भारत ने तालिबान की सरकार को कभी मान्यता नहीं दी.
और फिर हुआ कंधार: दिसंबर 1999 में काठमांडू से दिल्ली आ रहा एक भारतीय विमान हाइजैक हो गया. ये प्लेन पाकिस्तान से जुड़े आतंकियों ने अगवा किया और आखिर में उसे कंधार ले जाया गया. उस वक्त तालिबान की मौजूदगी और उनके छुपे समर्थन के डर से भारत ने सीधे कोई कार्रवाई नहीं की. इसके बजाय भारत को तीन खतरनाक आतंकियों को छोड़ना पड़ा, ताकि यात्रियों को सुरक्षित वापस लाया जा सके. यही वो पल था जब भारत-अफगानिस्तान के रिश्ते इतिहास में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थे.
अब हम दोस्त हैं?
2021 में जब अमेरिका जल्दबाजी में अफगानिस्तान से निकल गया, तो एक बार फिर तालिबान गोलियों की आवाजों के बीच काबुल की सत्ता में लौट आया. भारत ने इस पर तुरंत कोई फैसला नहीं लिया, बल्कि इंतजार करो और देखो की नीति अपनाई . इस दौरान भारत ने रिश्तों को सिर्फ इंसानी मदद और सांस्कृतिक जुड़ाव तक सीमित रखा, खासकर क्रिकेट डेमोक्रेसी के जरिए.
कई साल तक गुप्त मुलाकात और बैक चैनल बातचीत की अफवाहें चलती रहीं, जिन्हें भारत ने हमेशा नकारा. लेकिन 8 जनवरी 2025 को पहली बार कुछ ऑफिशियल हुआ, जब भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री से मुलाकात की. और, अब एस. जयशंकर ने भी तालिबान के विदेश मंत्री से बात कर ली है. यानी काबुल तक के इस टेढ़े-मेढ़े रास्ते में एक नया मोड़ आ चुका है.
लेकिन काबुल हमारे दुश्मन का दुश्मन कैसे हुआ?
अफगानिस्तान का इतिहास उठाकर देखें, तो साफ है - वो किसी के साथ ज्यादा दिन तक नहीं टिकता. कभी अमेरिका उसका दोस्त था, जब वो सोवियत संघ से लड़ रहा था, लेकिन बाद में वही अमेरिका उसका दुश्मन बन गया. अब वही सबक पाकिस्तान को भी मिल रहा है - जो कभी तालिबान का सबसे बड़ा समर्थक था, आज खुद उसकी चालों से परेशान है.
जिसे कभी तालिबान का कर्ता-धर्ता और अफगान जिहाद के पीछे का असली चेहरा माना जाता था, आज वे उसी काबुल से चार मोर्चों पर लड़ रहा है.
1. पाकिस्तान में TTP (तेहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) के हमले तेज हो गए हैं - खासकर खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में. पाकिस्तान का कहना है कि ये लड़ाके अफगान जमीन से ऑपरेट करते हैं और 'रेड एंड रिट्रीट' यानी हमला करके वापस भागने की नीति अपनाते हैं. (वाह! जो खुद इस चाल के मामा रहे हों, अब वही शिकायती चिट्ठी लिख रहे हैं!)
2. दिसंबर में एक TTP हमले के बाद पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के पक्तिका प्रांत पर एयर स्ट्राइक की. पाकिस्तान ने कहा कि उसने आतंक के ठिकानों पर हमला किया, लेकिन अफगानिस्तान ने इसे खारिज करते हुए कहा - इसमें तो आम लोग मारे गए. (ऑपरेशन सिंदूर की याद आई?)
3. पाकिस्तान जब बॉर्डर पर फेंसिंग करके डूरंड लाइन लागू करने की कोशिश करता है, तो अफगानिस्तान से झगड़े और झड़पें होती रहती हैं.
4. 2023 में पाकिस्तान ने हजारों अफगान शरणार्थियों को देश से ये कहकर निकाल दिया कि ये सुरक्षा के लिए खतरा हैं और बॉर्डर पर गड़बड़ कर रहे हैं. इससे अफगान जनता और भी नाराज हो गई.
द बेस्ट लेड प्लान्स - एक कड़वी शायरी जैसी सच्चाई
स्कॉटिश कवि रॉबर्ट बर्न्स ने एक चूहे के लिए कविता लिखी थी, जिसकी आखिरी लाइनें आज भी जिंदगी पर खूब फिट बैठती हैं:
"The best-laid schemes o' mice an' men
Gang aft agley,
An' lea'e us nought but grief an' pain,
For promis'd joy!"
इसको अगर आसान हिंदी में समझे तो - "चूहे और इंसान के सबसे अच्छे और सोच-समझकर बनाए गए प्लान अक्सर बिगड़ जाते हैं, और हमें खुशी की जगह
सिर्फ दुख और तकलीफ ही मिलती है." यानि, चाहे कितनी भी प्लानिंग कर लो, जिंदगी (या राजनीति) हमेशा वैसी नहीं चलती जैसे हम सोचते हैं.
2021 में जब तालिबान दोबारा काबुल की सत्ता में लौटा, तो पाकिस्तान खुशी से उछल पड़ा. उसके लाडले इमरान खान, जिन्हें तालिबान खान भी कहा गया, और बाकी नेताओं को लगा कि अब तो इंडिया को दोनों तरफ से घेर लेंगे.
लेकिन... तालिबान अब पाकिस्तान को उसी के बनाये हुए आतंक के फार्मूले का स्वाद चखा रहा है. वही प्लॉजिबल डिनायबिलिटी - यानी कुछ करो, फिर कह दो 'हमें तो कुछ पता ही नहीं.' और आज जब इस्लामाबाद का Af-Pak वाला सपना चकनाचूर हो रहा है, तो लोग हंसते हुए कह रहे हैं - अब ये Fak-Ap बन चुका है.
कहानी से सीख!
डूरंड लाइन पर लगी आग ने दिल्ली और काबुल के बीच जमी बर्फ को पिघला दिया है. अब रिश्तों में थोड़ी गर्माहट आ रही है, और आगे चलकर ये रणनीतिक साझेदारी में बदल सकती है - और ऐसा होना भी चाहिए. क्योंकि डिप्लोमेसी में ना कोई हमेशा दोस्त होता है, ना दुश्मन. सिर्फ रणनीतिक फायदे होते हैं, जो किसी पत्थर पर लकीर की तरह होते हैं. अगर आपको ये बात हजम नहीं हो रही, तो जरा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को देखिए, जो आजकल सीरिया के लीडर अहमद अल-शरा की तारीफों के पुल बांधते हैं. वही शख्स जो पहले अल-कायदा का आतंकवादी था.
जैसा कि विंस्टन चर्चिल ने कहा था - 'जो लोग कभी अपनी राय नहीं बदलते, वो कभी कुछ नहीं बदलते.' और, कौटिल्य भी यही कहते हैं - राजनीति में स्थायी कुछ नहीं होता, बस फायदा स्थायी होता है.
Watch Live TV in Hindi
Watch Live TV in Englishबड़ा सवाल: भारत और अफगानिस्तान, जो कभी एक ही साम्राज्य का हिस्सा थे, उनके रिश्ते कभी अच्छे तो कभी तनावपूर्ण रहे हैं. 1999 में इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट हाइजैकिंग इस रिश्ते की सबसे बड़ी चोट रही है. ऐसे में जयशंकर तालिबान से बात क्यों कर रहे हैं?
सीधा जवाब: चाणक्य की मंडल थ्योरी के मुताबिक, अगर दो राज्यों के बीच कोई तीसरा राज्य है, तो वो एक-दूसरे के दोस्त हो सकते हैं क्योंकि उनके दुश्मन एक जैसे होते हैं. आसान भाषा में कहें तो - दुश्मन का दुश्मन, दोस्त होता है.
अफगानिस्तान हमेशा से हमारा दोस्त था?
इसका जवाब हिमेश रेशमिया की सुपर-फ्लॉप फिल्म रेडियो की टैगलाइन में छुपा है. जो कहती है - 'इट्स कॉम्प्लिकेटेड' -, मतलब ये थोड़ा उलझा हुआ है.
आम राय यही है कि अफगानिस्तान शुरु से ही भारत के लिए परेशानी का सबब रहा है - खासकर महाभारत काल से. इस भारतीय महाकाव्य में कौरव और पांडव के बीच युद्ध हुआ तो इसकी एक बड़ी वजह जुए का उस्ताद, गांधार का एक धूर्त राजकुमार शकुनी ही था. गांधार, जो कभी भारत का हिस्सा माना जाता था, आज का कंधार माना जाता है - अफगानिस्तान के दक्षिण में, अर्घंदाब नदी के पास स्थित एक शहर. कुछ विद्वानों का मानना है कि अर्घंदाब नदी, हेलमंद (या वैदिक हरख्वती) की एक सहायक नदी है और यही वैदिक सरस्वती नदी रही होगी. लेकिन ये एक अलग बहस का विषय है.
भारत और अफगानिस्तान - एक साझा इतिहास: इंडो-आर्यन माइग्रेशन थ्योरी के मुताबिक, गांधार एक ट्रांजिट पॉइंट यानी रास्ता था. भाषाविदों का दावा है कि काबुल (संस्कृत में कुभ) और बाल्क (संस्कृत में बालिक) जैसे नाम संस्कृत से जुड़े हुए हैं, जो इस साझा इतिहास की ओर इशारा करते हैं. मौर्यकाल से लेकर कई सदियों तक, आज के अफगानिस्तान का एक बड़ा हिस्सा भारत के साम्राज्य में शामिल रहा था.
फाइनल ब्रेकअप:
भारत के साथ सदियों से चले आ रहे कभी साथ-साथ, तो कभी अलग-अलग रहने वाले रिश्ते का पक्का वाला ब्रेकअप 18वीं सदी में दुर्रानी साम्राज्य के जमाने में हुआ. इसके बाद ब्रिटिशों ने अफगानिस्तान को 'ग्रेट गेम' में रूस के खिलाफ एक बफर स्टेट बना दिया - जहां दोनों बड़ी ताकतों के बीच जोर आजमाइश चलती रही. 1973 में जब अफगानिस्तान एक गणराज्य बना, तो भारत ने एक दोस्त की तरह उसे फौरन मान्यता दे दी. ये नाज़ुक सी दोस्ती 1996 तक चली - जब तालिबान का उदय हुआ और अफगानिस्तान ने एक दुश्मन का रूप ले लिया.
तालिबान ने हमें दुश्मन क्यों माना?
तालिबान एक कट्टरपंथी लड़ाकू संगठन है और जिसकी जड़ें पाकिस्तान में थीं. 1996 में वो अफगानिस्तान में सिविल वॉर जीतकर सत्ता में आया. भारत के पास इस संगठन से दूरी बरतने की कई वजहें थीं - मसलन पाकिस्तान से मिल रहा समर्थन, तालिबान की कट्टर सोच, और मानव अधिकारों का उल्लंघन. इन्हीं वजहों से भारत ने तालिबान की सरकार को कभी मान्यता नहीं दी.
और फिर हुआ कंधार: दिसंबर 1999 में काठमांडू से दिल्ली आ रहा एक भारतीय विमान हाइजैक हो गया. ये प्लेन पाकिस्तान से जुड़े आतंकियों ने अगवा किया और आखिर में उसे कंधार ले जाया गया. उस वक्त तालिबान की मौजूदगी और उनके छुपे समर्थन के डर से भारत ने सीधे कोई कार्रवाई नहीं की. इसके बजाय भारत को तीन खतरनाक आतंकियों को छोड़ना पड़ा, ताकि यात्रियों को सुरक्षित वापस लाया जा सके. यही वो पल था जब भारत-अफगानिस्तान के रिश्ते इतिहास में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थे.
अब हम दोस्त हैं?
2021 में जब अमेरिका जल्दबाजी में अफगानिस्तान से निकल गया, तो एक बार फिर तालिबान गोलियों की आवाजों के बीच काबुल की सत्ता में लौट आया. भारत ने इस पर तुरंत कोई फैसला नहीं लिया, बल्कि इंतजार करो और देखो की नीति अपनाई . इस दौरान भारत ने रिश्तों को सिर्फ इंसानी मदद और सांस्कृतिक जुड़ाव तक सीमित रखा, खासकर क्रिकेट डेमोक्रेसी के जरिए.
कई साल तक गुप्त मुलाकात और बैक चैनल बातचीत की अफवाहें चलती रहीं, जिन्हें भारत ने हमेशा नकारा. लेकिन 8 जनवरी 2025 को पहली बार कुछ ऑफिशियल हुआ, जब भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री से मुलाकात की. और, अब एस. जयशंकर ने भी तालिबान के विदेश मंत्री से बात कर ली है. यानी काबुल तक के इस टेढ़े-मेढ़े रास्ते में एक नया मोड़ आ चुका है.
लेकिन काबुल हमारे दुश्मन का दुश्मन कैसे हुआ?
अफगानिस्तान का इतिहास उठाकर देखें, तो साफ है - वो किसी के साथ ज्यादा दिन तक नहीं टिकता. कभी अमेरिका उसका दोस्त था, जब वो सोवियत संघ से लड़ रहा था, लेकिन बाद में वही अमेरिका उसका दुश्मन बन गया. अब वही सबक पाकिस्तान को भी मिल रहा है - जो कभी तालिबान का सबसे बड़ा समर्थक था, आज खुद उसकी चालों से परेशान है.
जिसे कभी तालिबान का कर्ता-धर्ता और अफगान जिहाद के पीछे का असली चेहरा माना जाता था, आज वे उसी काबुल से चार मोर्चों पर लड़ रहा है.
1. पाकिस्तान में TTP (तेहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) के हमले तेज हो गए हैं - खासकर खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में. पाकिस्तान का कहना है कि ये लड़ाके अफगान जमीन से ऑपरेट करते हैं और 'रेड एंड रिट्रीट' यानी हमला करके वापस भागने की नीति अपनाते हैं. (वाह! जो खुद इस चाल के मामा रहे हों, अब वही शिकायती चिट्ठी लिख रहे हैं!)
2. दिसंबर में एक TTP हमले के बाद पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के पक्तिका प्रांत पर एयर स्ट्राइक की. पाकिस्तान ने कहा कि उसने आतंक के ठिकानों पर हमला किया, लेकिन अफगानिस्तान ने इसे खारिज करते हुए कहा - इसमें तो आम लोग मारे गए. (ऑपरेशन सिंदूर की याद आई?)
3. पाकिस्तान जब बॉर्डर पर फेंसिंग करके डूरंड लाइन लागू करने की कोशिश करता है, तो अफगानिस्तान से झगड़े और झड़पें होती रहती हैं.
4. 2023 में पाकिस्तान ने हजारों अफगान शरणार्थियों को देश से ये कहकर निकाल दिया कि ये सुरक्षा के लिए खतरा हैं और बॉर्डर पर गड़बड़ कर रहे हैं. इससे अफगान जनता और भी नाराज हो गई.
द बेस्ट लेड प्लान्स - एक कड़वी शायरी जैसी सच्चाई
स्कॉटिश कवि रॉबर्ट बर्न्स ने एक चूहे के लिए कविता लिखी थी, जिसकी आखिरी लाइनें आज भी जिंदगी पर खूब फिट बैठती हैं:
"The best-laid schemes o' mice an' men
Gang aft agley,
An' lea'e us nought but grief an' pain,
For promis'd joy!"
इसको अगर आसान हिंदी में समझे तो - "चूहे और इंसान के सबसे अच्छे और सोच-समझकर बनाए गए प्लान अक्सर बिगड़ जाते हैं, और हमें खुशी की जगह
सिर्फ दुख और तकलीफ ही मिलती है." यानि, चाहे कितनी भी प्लानिंग कर लो, जिंदगी (या राजनीति) हमेशा वैसी नहीं चलती जैसे हम सोचते हैं.
2021 में जब तालिबान दोबारा काबुल की सत्ता में लौटा, तो पाकिस्तान खुशी से उछल पड़ा. उसके लाडले इमरान खान, जिन्हें तालिबान खान भी कहा गया, और बाकी नेताओं को लगा कि अब तो इंडिया को दोनों तरफ से घेर लेंगे.
लेकिन... तालिबान अब पाकिस्तान को उसी के बनाये हुए आतंक के फार्मूले का स्वाद चखा रहा है. वही प्लॉजिबल डिनायबिलिटी - यानी कुछ करो, फिर कह दो 'हमें तो कुछ पता ही नहीं.' और आज जब इस्लामाबाद का Af-Pak वाला सपना चकनाचूर हो रहा है, तो लोग हंसते हुए कह रहे हैं - अब ये Fak-Ap बन चुका है.
कहानी से सीख!
डूरंड लाइन पर लगी आग ने दिल्ली और काबुल के बीच जमी बर्फ को पिघला दिया है. अब रिश्तों में थोड़ी गर्माहट आ रही है, और आगे चलकर ये रणनीतिक साझेदारी में बदल सकती है - और ऐसा होना भी चाहिए. क्योंकि डिप्लोमेसी में ना कोई हमेशा दोस्त होता है, ना दुश्मन. सिर्फ रणनीतिक फायदे होते हैं, जो किसी पत्थर पर लकीर की तरह होते हैं. अगर आपको ये बात हजम नहीं हो रही, तो जरा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को देखिए, जो आजकल सीरिया के लीडर अहमद अल-शरा की तारीफों के पुल बांधते हैं. वही शख्स जो पहले अल-कायदा का आतंकवादी था.
जैसा कि विंस्टन चर्चिल ने कहा था - 'जो लोग कभी अपनी राय नहीं बदलते, वो कभी कुछ नहीं बदलते.' और, कौटिल्य भी यही कहते हैं - राजनीति में स्थायी कुछ नहीं होता, बस फायदा स्थायी होता है.
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